पाठ 9 : कबीर की साखियाँ

पाठ का सार (सरल भाषा में)

इस पाठ में कबीर के प्रसिद्ध साखी (दोहे) दिए गए हैं।
कबीर अपने दोहों के माध्यम से सत्य, प्रेम, विनम्रता, आत्मज्ञान और दिखावे से दूर रहने की सीख देते हैं।
वे कहते हैं कि बाहरी आडंबर से नहीं, बल्कि अच्छे कर्म और सच्चे हृदय से ईश्वर मिलता है।
कबीर की भाषा सरल है, लेकिन अर्थ बहुत गहरा है—जो हमें व्यावहारिक जीवन में सही रास्ता दिखाता है।


🪔 मुख्य साखियाँ व उनके अर्थ (सरल भाषा में)

साखी 1

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥

अर्थ:
जब मैंने दूसरों में बुराई खोजी, तो कुछ नहीं मिला।
जब अपने मन को देखा, तो समझ आया कि मेरी ही कमियाँ सबसे बड़ी हैं।
👉 सीख: आत्ममंथन ज़रूरी है।


साखी 2

साईं इतना दीजिए, जा में कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाय॥

अर्थ:
ईश्वर से उतना ही माँगो जितने में परिवार चल जाए—
ना खुद भूखे रहें, ना अतिथि।
👉 सीख: संतोष और उदारता


साखी 3

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय॥

अर्थ:
हर काम समय से होता है।
जल्दी करने से परिणाम नहीं बदलते।
👉 सीख: धैर्य


📝 प्रश्न–उत्तर (Question–Answer)

प्रश्न 1. कबीर की साखियों का मुख्य उद्देश्य क्या है?

उत्तर:
मानव को सत्य, प्रेम, विनम्रता और सही आचरण की सीख देना।


प्रश्न 2. ‘बुरा जो देखन मैं चला’ साखी से क्या शिक्षा मिलती है?

उत्तर:
हमें दूसरों की बुराइयाँ देखने के बजाय अपनी कमियों को सुधारना चाहिए।


प्रश्न 3. कबीर संतोष को क्यों महत्व देते हैं?

उत्तर:
क्योंकि संतोष से जीवन सुखी और संतुलित रहता है।


प्रश्न 4. कबीर के अनुसार सफलता कैसे मिलती है?

उत्तर:
धैर्य, समय और निरंतर प्रयास से।


प्रश्न 5. इस पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

उत्तर:
हमें सादा जीवन, सच्चा व्यवहार और धैर्य अपनाना चाहिए।


✍️ शब्दार्थ

  • साखी – उपदेशात्मक दोहा

  • आडंबर – दिखावा

  • संतोष – तृप्ति

  • धैर्य – सब्र

  • आत्मज्ञान – स्वयं को जानना


परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिंदु

  • भाषा सरल, भाव गहरे

  • दिखावे का विरोध

  • सत्य, संतोष और धैर्य का संदेश

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